Sunday, June 8, 2008

काठ का घोड़ा लाने गए पिता नहीं आये... बद्रीनारायण की एक कविता

हिंदी की युवा कविता के सम्‍मानित कवि हैं बद्रीनारायण... कविताओं में लोक रंग की कूची चलती है उनके यहां... उनकी नई कविता है बच्‍चे का गीत... पिता पर मार्मिक कविता है... कुमार जी की किवाड़ चिपकाते समय ही हमने बताया था कि पिता को लेकर बहुत भावुक हो जाते हैं हम... जब से पिता नहीं रहे वह मेरे भीतर पहले से ज़्यादा रहने लगे हैं...

बद्रीनारायण की यह कविता पढि़ये...

।। बच्‍चे का गीत ।।

काठ का घोड़ा लाने गए
पिता नहीं आए
सोने की चिडि़या लाने गए
पिता नहीं आए
नीले सपने लाने गए
पिता नहीं आए
दादी की पुतली और बाबा के ढांढस
मेरे पिता अब तक नहीं आए
कत्‍थई गिलहरी लाने गए
पिता नहीं आए
मां की फहराती साड़ी के सबुज रंग मेरे पिता
अब तक नहीं आए
हरा तोता बनकर गए पिता नहीं आए
सपने का मृग लाने गए पिता नहीं आए

पिता आए तो उनकी लाश आई
तृतीय श्रेणी के डिब्‍बे में
शौचालय के पास की थोड़ी जगह में
लिटाई हुई

(हंस, जून 2008 से साभार)