राजेश जोशी हिंदी के वरिष्ट कवि हैं... हमने उनकी कुछ कवितायें पढी हैं... विभिन्न पत्रिकाओं में... यह कविता हमें बहुत पसंद आयी है... हमने सोचा की हमारे साथ आप भी पढे तो लीजीए...
।। रूको बच्चों ।।
रूको बच्चों रूको
सड़क पार करने से पहले रुको
तेज रफ्तार से जाती इन गाडियों को गुजर जाने दो
वो जो सर्र से जाती सफेद कार में गया
उस अफसर को कहीं पहुंचने की कोई जल्दी नहीं है
वो बारह या कभी कभी तो इसके बाद भी पहुंचता है अपने विभाग में
दिन महीने या कभी कभी तो बरसों लग जाते हैं
उसकी टेबिल पर रखी जरुरी फाइल को खिसकने में
रूको बच्चों
उस न्यायाधीश की कार को निकल जाने दो
कौन पूछ सकता है उससे कि तुम जो चलते हो इतनी तेज कार में
कितने मुकदमे लंबित हैं तुम्हारी अदालत में कितने साल से
कहने को कहा जाता है कि न्याय में देरी न्याय की अवहेलना है
लेकिन नारा लगाने या सेमीनारों में बोलने के लिए होते हैं ऐसे वाक्य
कई बार तो पेशी दर पेशी चक्कर पर चक्कर काटते
ऊपर की अदालत तक पहुच जाता है आदमी
और नहीं हो पाता इनकी अदालत का फैसला
रूको बच्चों सडक पार करने से पहले रुको
उस पुलिस अफसर की बात तो बिल्कुल मत करो
वो पैदल चले या कार में
तेज चाल से चलना उसके प्रशिक्षण का हिस्सा है
यह और बात है कि जहां घटना घटती है
वहां पहूंचता है वो सबसे बाद में
रूको बच्चों रुको
साइरन बजाती इस गाडी के पीछे पीछे
बहुत तेज गती से आ रही होगी किसी मंत्री की कार
नहीं नहीं उसे कहीं पहुंचने की कोई जल्दी नहीं
उसे तो अपनी तोंद के साथ कुर्सी से उठने में लग जाते हैं कई मिनट
उसकी गाडी तो एक भय में भागी जाती है इतनी तेज
सुरक्षा को एक अंधी रफ्तार की दरकार है
रूको बच्चों
इन्हें गुजर जाने दो
इन्हें जल्दी जाना है
क्योंकि इन्हें कहीं पहुंचना है
Saturday, July 12, 2008
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