Saturday, May 17, 2008

मैं आ गई हूं... मेरा स्वागत कीजिए...

ब्लॉग की दुनिया को हाय हैलो सलाम नमस्ते आदाब अर्ज सतश्री अकाल।
अब आप पूछेंगे कि मैं कौन हूं... तो इस प्रश्न का उत्तर तो आपको इस ब्लॉग पर आते आते ही मिलेगा... लेकिन एक बात आपको बता दूं कि विगत छह मास से ब्‍लॉग की दुनिया के चक्कर काट रही हूं... जहां कुछ अच्छा लग जाता है... तो टिपिया भी देती हूं... उसे बच्चों की तरह अपनी डायरी में नोट भी कर लेती हूं...

काफी समय से सोच रखा था... एक ब्लॉग हो सपनों का... आरकुट पर भी लोग पूछते ही रहते थे... कई बेसब्रे तो ईमेल पर ईमेल करते थे... कब बना रही हो अपना ब्लॉग... वादा किया था मैंने.... अपनी कविताएं अपने स्वयं के ब्लॉग पर पढाऊंगी... पर असली दुनिया के झंझट ऐसा करने का पूरा अवकाश नहीं देते थे... कुछ ट्रेवलिंग...कुछ एग्जाम्स... पर अब तो शुरु हो गए हैं जी हम भी। धडाधड महाराज की तरह ...

वक्रतुण्ड महाकाय से लेकर एकदंत गजानन तक सारे नाम दर्ज कर लिए हैं हमने... आबरा का डाबरा से लेकर ओउम फट फट भी.... अब मुझे यहां से हटाने के लिए कोई आल तू जलाल तू.. आई बला को टाल तू... पढे तो भी अपन हटने वाली नहीं हैं... हां भय्यू... तो पढिए पहली पोस्ट में हमारी पहली कविता...
खूब लिखते हैं हम... और आगे भी लिखते रहेंगे... इसीलिए तो आए हैं भई हम यहां पर.... ..... ...

कौन हूं मैं

मैं हरी पत्ती
जिस पर बारिश की बूंदें अभी अभी गिरी हैं
मैं दूब की नोंक
जो अभी अभी हवा से लड़ी है
मैं एक बहती हुई नदी
जिसकी कमर पर कोई नगरी बसी है
मैं एक स्त्री
जिसमें रहती हैं
हरी पत्तियां
गिन न सकोगे इतनी दूब
और संसार की सारी नदियां
अब देखिए आप.... इस कविता से मेरा परिचय मिल जाता है... न भी मिले, तो भी टिपियाने में कोई कोताही हमसे बरदास्त नहीं होगी... हां.. कहे देते हैं... जमके टिपियाइये...
आज तो आप यही पढिए... इंतजार कीजिए कल तक...

34 comments:

vijaymaudgill said...

नंदिनी जी आपकी कविता अच्छी लगी। आपने जो औरत की गहराई बताई है, बहुत अच्छा लगा। वैसे औरत एक ऐसा अथाह महासागर है, जिसकी गहराई नहीं मापी जा सकती। सच में औरत अपने अंदर कई ऐसे पल, दुख, सुख समेटे हुए है जिन को गिन पाना मुमकिन नहीं। मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

Anonymous said...

नंदिनी जी
अच्छी कविता लिखी हैैं। ब्लॉग की दुनिया मे आपका स्वागत हैंैं।

Neeraj Rohilla said...

हिन्दी ब्लॉग जगत में स्वागत है....

आगे भी लिखती रहे |

Anita kumar said...

कविता समझ पाने जितनी बुद्धी अपुन में हैं नहीं तो बस इतना ही कहेगें आइए, जगह बना दी है, बैठिए।

samshad ahmad said...

हम कल का इंतज़ार कर रहे हैं

Anonymous said...

हम भी इंतजार कर रहे हैं। स्वागत है हिन्दी चिट्ठाजगत में।

Asha Joglekar said...

नंदिनी जी स्वागत है आपका । कविता भी बहुत पसंद आई ।

अनूप शुक्ल said...

स्वागत है!

अजय कुमार झा said...

nandini jee,
hindi blogjagat mein aapkaa swaagat hai , aur aapkaa mizaaz dekhkar lag raha hai ki jaldee hee aap hamaree pasand soochi mein bhee shamil hongee.

अजित वडनेरकर said...

स्वागत है आपका।
बेफिक्र रहिये , जल तू जलाल तू
जैसा कोई टोटका पढ़ने की यहां ज़रूरत
नहीं पड़ने वाली है

सागर नाहर said...

आगाज ही इतना बढ़िया किया आपने... नंदिनी
हिन्दी चिट्ठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है, आप हिन्दी में बढ़िया लिखें और खूब लिखें यही उम्मीद है।

॥दस्तक॥
तकनीकी दस्तक
गीतों की महफिल

विजय गौड़ said...

चिट्ठाजगत की सूचना ने आपके ब्लाग तक पहुंचाया. खूब है. बधाई एवं स्वागत.

Uday Prakash said...

aapkaa swaagat hai. anant shubhkaamnayen.

बाल भवन जबलपुर said...

badhai suswagtam

सुभाष नीरव said...

चिट्ठाजगत का शुक्रगुजार हूँ कि उसने नये चिट्ठों की सूची मुझे भेजी। नि:संदेह शुरुआत बड़ी धाकड़ है। आपका स्वागत है ब्लाग इस दुनिया में। बस, कुछ हटकर सार्थक करते रहिए।
सुभाष नीरव
www.sahityasrijan.blogspot.com
www.srijanyatra.blogspot.com

sushant jha said...

बहुत अच््छी कविता है...मेरी शुभकामनएं..।

पी के शर्मा said...

ब्‍लोगल वार्मिंग में आपका स्‍वागत है
हरी पत्‍ती नुकीली दूब
बहती नदी हो बहुत खूब

Geet Chaturvedi said...

इतने ढोल-धमाके के साथ आई हैं, और आदेश दे रही हैं स्‍वागत करने का, तो हम इंकार भला कैसे कर सकते हैं.
स्‍वागत है आपका. शुभकामनाएं ढेर सारी.

सुशील छौक्कर said...

वाह क्या बात है। शब्दो का जादू छा गया।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

शानदार...रोचक....कुछ हटकर
कुछ नया कहने के अंदाज़ वाला आगाज़.
==========================
रंग शब्दों में भरो भावों के
भावों को बोध का सहारा दो .
जो भी कहना हो कहो शिद्दत से
भँवर से ख्वाब को किनारा दो.

शुभकामनाएँ
डा.चंद्रकुमार जैन

Deepak Kumar said...

Rapchik yaar.

Unknown said...

sunder hai badhaaie sweekar karen.
Prem

Ashok Pandey said...

आप खूब लिखें... ढेरों शुभकामनाएं।
ब्लॉगजगत में आपके आने का अंदाज ताजगी का अहसास दे गया।

Udan Tashtari said...

हिन्दी ब्लॉग जगत में स्वागत है. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाऐं.

Reetesh Gupta said...

सुंदर कविता ...बधाई
स्वागत है आपका

Amit K Sagar said...

मैं हरी पत्ती
जिस पर बारिश की बूंदें अभी अभी गिरी हैं
मैं दूब की नोंक
जो अभी अभी हवा से लड़ी है
मैं एक बहती हुई नदी
जिसकी कमर पर कोई नगरी बसी है
मैं एक स्त्री
जिसमें रहती हैं
हरी पत्तियां
गिन न सकोगे इतनी दूब
और संसार की सारी नदियां
------------------------
आपका स्वागत व कविता बहुत ही लाज़बाब. बेहतर. लिखते रहिये, और भी अच्छा लिखें, येसी तमाम शुभकामनाएं.
---
उल्तातीर-तीर वही जो घायल कर दे...~!~http://ultateer.blogspot.com~!~

आशीष कुमार 'अंशु' said...

स्वागत है....

ghughutibasuti said...

नन्दिनी जी आपका स्वागत है। कविता अच्छी लगी।
घुघूती बासूती

काकेश said...

स्वागतम.

Anonymous said...

नंदिनी जी,

एक ब्लॉग पढ़नेवाले की ओर से भी ख़ैर-मक़दम क़ुबूल कीजिए। आपकी पहली कविता पढ़ गया। पढ़ गया इसलिए कि बहुत ही सशंक रहता हूँ, इस मामले में। पर आपने ताज़ा उपमानों की ऐसी झड़ी लगाई कि मज़ा आ गया। शहर को बसानेवाली नदी की कमर - अद्भुत कल्पना है। ज़ोरे-क़लम और ज़्‍यादा।

रविकान्त

vangmyapatrika said...

नंदिनी जी स्वागत है आपका । कविता भी बहुत पसंद आई ।बधाई हो . लिखती रहिये .www.vangmaypatrika.blogspot.com
www.vangmay.com
www.radiosabrang.com देखे और दिखाये

Guman singh said...

नंदिनी जी स्वागत है आपका । कविता भी बहुत पसंद आई ।
Rao GumanSingh
Jodhpur (Rajasthan)

Anonymous said...

svaagat hai meri priya kavi marina tsvetaeva ka punarjanm leni vaali nandni ji! Ye anuvaad aapne kiye hain kya? yadi nahin to anuvaadak kaa naam bhi denaa chaahiye.
haardik mangalkaamnayeen.

अनूप भार्गव said...

सुन्दर कविता है । स्वागत ....